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Iraq में Muslims आपस में क्यों भिडे़ और USA को लेकर रुख़ कैसे बदल गया_ (BBC HIND.mp4

Conscious Mind's
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Publié le 22 Jan 2020 / Dans

साल 2003 के दिसंबर महीने में अमरीका ने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदख़ल किया तो वहां के शिया मुसलमानों ने जश्न मनाया था. शियाओं को लगा था कि अमरीका ने सद्दाम हुसैन को हटाकर उनकी मनोकामना पूरी कर दी. इराक़ के वर्तमान प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल महदी तब शक्तिशाली शिया पार्टी के नेता थे. सद्दाम के अपदस्थ होने के बाद वो एसयूवी गाड़ी पर सवार होकर एक जुलूस में निकले थे. हर तरफ़ से वो बॉडीगार्ड से घिरे थे और जीत का जश्न मना रहे थे. इसी जश्न में उन्होंने लंदन के पत्रकार एंड्र्यू कॉकबर्न से कहा था, ''सब कुछ बदल रहा है. लंबे समय से शिया समुदाय के लोग इराक़ में बहुसंख्यक होने के बावजूद अल्पसंख्यकों की तरह रह रहे थे. अब शियाओं के हाथ में इराक़ की कमान आएगी.'' 2003 के बाद से अब तक इराक़ के सारे प्रधानमंत्री शिया मुसलमान ही बने और सुन्नी हाशिए पर होते गए. 2003 से पहले सद्दाम हुसैन के इराक़ में सुन्नियों का ही वर्चस्व रहा. सेना से लेकर सरकार तक में सुन्नी मुसलमानों का बोलबाला था. सद्दाम के दौर में शिया और कुर्द हाशिए पर थे. इराक़ में शिया 51 फ़ीसदी हैं और सुन्नी 42 फ़ीसदी लेकिन सद्दाम हुसैन के कारण शिया बहुसंख्यक होने के बावजूद बेबस थे. जब अमरीका ने मार्च 2003 में इराक़ पर हमला किया तो सुन्नी अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे और शिया अमरीका के साथ थे. 17 साल बाद अब समीकरण फिर से उलटता दिख रहा है. इसी महीने इराक़ की संसद में एक प्रस्ताव पास किया गया कि अमरीका अपने सैनिकों को वापस बुलाए. इस प्रस्ताव का इराक़ के प्रधानमंत्री अब्दुल महदी ने भी समर्थन किया. सबसे दिलचस्प ये रहा कि संसद में इस प्रस्ताव का सुन्नी और कुर्द सांसदों ने बहिष्कार किया और शिया सांसदों ने समर्थन किया. संसद में बहस के दौरान सुन्नी स्पीकर ने शिया सांसदों से कहा था कि वो इराक़ के भीतर फिर से हिंसा और टकराव को लेकर सतर्क रहें. मोहम्मद अल-हलबूसी ने कहा था, ''अगर कोई ऐसा क़दम उठाया गया तो इराक़ के साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय वित्तीय लेन-देन बंद कर देगा. ऐसे में हम अपने लोगों की ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पाएंगे.'' हालांकि ये सवाल भी उठ रहे हैं कि इराक़ की वर्तमान सरकार के पास वो अधिकार नहीं है कि अमरीकी सैनिकों को वापस जाने पर मजबूर करे. अब्दुल महदी केयरटेकर प्रधानमंत्री हैं. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि सुन्नी चाहते हैं कि अमरीकी सैनिक इराक़ में रहें और शिया चाहते हैं कि अमरीका अपने सैनिकों को वापस बुलाए. 2003 में सुन्नी इराक़ में अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे और अब इन्हें लग रहा है कि अमरीका यहां से गया तो वो सुरक्षित नहीं रहेंगे. दूसरी तरफ़, जिस अमरीका ने सद्दाम हुसैन को हटाया वही अमरीका अब इराक़ में शिया मुसलमानों को ठीक नहीं लग रहा. तो क्या अमरीका के प्रति इराक़ के भीतर सुन्नी मुसलमानों के मन में सहानुभूति पैदा हो रही है और अमरीका भी अब सुन्नियों का साथ देगा? दूसरा सवाल यह कि इराक़ के भीतर पूरा समीकरण कैसे उलट गया?

स्टोरी: रजनीश कुमार
आवाज़: मोहम्मद शाहिद

#Iraq #Iran #DonaldTrump

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